आज फिर वही पीला चाँद निकला है आसमान में ..
गर्मी में शायद आज फिर निकला है बहुत मशक्कत से अपने घर से !!
हल्के हल्के दाग धुंधली आँखों से भी दिख रहे मुझे ..
लगता है आज बहुत जी चुरा के रवाना हुआ होगा.
सारी रात जागेगा .. अब अँधेरे में .. अकेले ही
अब शहर में कोई सितारा दोस्त मिलना भी तो कितना मुश्किल है
कितना न मुनासिब होता है न किसी के लिए रात का ढलना
और जाने कितने लॉग दुआमांगते होंगे सर्दियां आ जायें
और रातें लम्बी हो जायें .. सिर्फ 10 मिनट की उम्दा नींद की खातिर!!
अभी कुछ सालों से शायद चिद्चिदा भी हो गया है ..
कभी नाराज़गी में बाहर नही आता ,बस बादलों की खिड़की में बैठे बैठे ..
झांकता रहता है जमीं पर ..ताकता रहता है ...
उस फ्लाईओवर को, उस मेट्रो को .. जहां कभी सब जंगल जैसे रहता था !!
Bahut aage jaaoge... I can see it clearly... Keep writing... and keep sharing... Very well written poem... You've poured the emotions effortlessly...
ReplyDeleteBlessings to you Anu...
Thanks Gaurav Bhaiya!!
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