कहना है तुमको कुछ, सोचता हूँ क्या कहूं
दोस्त कहूं, दिल कहूं या जाने वफ़ा कहूं
मिसालें छोटी हैं सब दुनिया में
तुम्हारे आगे
कहूं तो आख़िर मैं तुमको क्या कहूं
लोग ऐसे भी हैं दुनिया में, साथ जिनके,
वक़्त पता नही कैसे गुज़र जाता है
कितना भी कह लो,
कहने को कुछ न कुछ रह ही जाता है
इतनी बातें हैं दिल में,
समझ नही आता क्या आगाज़ करुँ ...
मैं था मासूम,
समझ नही थी ज़माने की
जब भी मुडा ग़लत रास्ते पे,
खड़ी थी एक दीवार किसी की यारी की
मैं अच्छा हूँ, मेरी कोई तारीफ नही
अपनी सीरत को भी मैं तेरा एजाज़ कहूं ...
बस चले तो तेरा सारा दर्द चुरा लूँ,
तेरी आंखों की नमी, अपनी आंखों में छुपा लूँ
इतना लगता है तू अपना ऐ दोस्त,
की तेरे दिल को भी अपना दिल कहूं ...
एक रोज तुझे तेरी मंजिल मिल ही जायेगी
कोशिश कर तू, बहार ज़रूर आयेगी
मेहनत कर, दिल बड़ा रख,
कह तो,
तेरे लिए मैं ख़ुद, खुदा से कुछ बात करुँ...
कहना है कुछ सोचता हूँ क्या कहूं ....
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